इस अध्याय में सती द्वारा श्रीराम की परीक्षा लेने की कथा वर्णित है। जब सती को भगवान शिव की बातों पर संदेह हुआ, तब उन्होंने स्वयं सीता का रूप धारण कर श्रीराम की परीक्षा ली। इस परीक्षा के बाद श्रीराम ने सती को पहचान लिया, जिससे सती का भ्रम दूर हुआ। उन्होंने श्रीराम की महिमा को स्वीकार किया और उनके चरणों में प्रणाम किया। यह प्रसंग भक्तिरस, विनम्रता और आत्म-ज्ञान का बोध कराता है।
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