सातवाँ अध्याय – संध्या की आत्माहुति
इस अध्याय में ब्रह्माजी नारद को संध्या देवी की कथा सुनाते हैं। भगवान शिव से वरदान प्राप्त करने के बाद संध्या मुनि मेधातिथि के यज्ञ स्थल पर पहुँचीं। उन्होंने आत्मशुद्धि के लिए यज्ञ की प्रज्वलित अग्नि में कूदकर आत्माहुति दी। उनके शरीर का ऊपरी भाग प्रातः संध्या और शेष भाग सायं संध्या में परिवर्तित हो गया।
भगवान शिव ने संध्या को दिव्य शरीर प्रदान किया। यज्ञ की समाप्ति पर मेधातिथि मुनि ने अग्नि में एक कन्या को पाया, जिसका नाम अर्घमती रखा। उसका लालन-पालन किया गया, और जब वह विवाह योग्य हुई, तो उसका विवाह महर्षि वशिष्ठ से संपन्न हुआ।
इस कथा का महत्व यह है कि संध्या वंदन और पूजन का धार्मिक महत्व समझाया गया है। साथ ही, यह बताया गया है कि जो इस पवित्र कथा को सुनते या पालन करते हैं, उनकी सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं।